Saturday, October 30, 2010

छत्तीसगढ़ का सफर : सिंहासन बत्तीसी के साथ अस्तित्व में आया छत्तीसगढ़

न 2000 में अक्टूबर और नवंबर का महीना नए राज्य के सृजन का गवाह है। नए राज्य में सत्ता हथियाने और उसके करीब आने के लिए चली गई राजनीतिक चालों ने राज्य का इतिहास लिख दिया।
जोड़-तोड़, उठापटक और विरोध की उत्कंठा के बीच 31 अक्टूबर की रात 12 बजे साथ भारत के गणतंत्र में छत्तीसगढ़ को अलग पहचान मिल गई और सिंहासन बत्तीसी के खेल के बीच छत्तीसगढ़ के पहले मुख्यमंत्री ने शपथ ली। राज्य नया जरूर था पर राजनीति की कमान पुराने दिग्गजों के हाथों में थी।

छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण के शुरुआती दिन काफी हंगामेदार और उतार चढ़ाव वाले रहे। खासकर राजनीतिक ड्रामा चरम पर रहा। राज्य का निर्माण किया भाजपा की अटल सरकार ने, लेकिन मध्यप्रदेश से अलग होने वाले छत्तीसगढ़ के 90 विधायकों में संख्या बल के आधार पर सरकार गठन की बारी आई तो कांग्रेस को मौका मिला।

इसी के साथ बिछ गई थी राजनीति की बिसात। कांग्रेस का हर दिग्गज मुख्यमंत्री पद का दावेदार था। बस्तर के तेजतर्रार नेता महेंद्र कर्मा ने आदिवासी विधायकों को लेकर आदिवासी एक्सप्रेस चला रखी थी। उनके साथ 17 से 18 विधायक थे। पूर्व केंद्रीय मंत्री विद्याचरण शुक्ल करीब 12 विधायकों के साथ सरकार बनाने की जुगत में लगे हुए थे।

दूसरी ओर अजीत जोगी जिनके पास विधायकों का समर्थन तो मात्र दो लोगों का था, लेकिन पार्टी हाईकमान से नजदीकियों के चलते प्रभावशाली बने हुए थे। मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री श्यामाचरण शुक्ल चार विधायकों के साथ अपनी ताल ठोंक रहे थे।

सबके निशाने पर थी सीएम की कुर्सी।कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने अजीत जोगी का नाम तय कर मध्यप्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह को पर्यवेक्षक बनाकर भेजा तो राजनीति के खेल में एक मुख्यमंत्री की लाचारी भी सामने आई। दिग्विजय सिंह मंत्रिमंडल के तमाम सदस्यों और विधायकों पर दिग्विजय सिंह का जबर्दस्त प्रभाव था।

बावजूद इसके वे अपनी मर्जी से नाम तय नहीं करवा सके। उन्हें हाईकमान ने उस व्यक्ति को मुख्यमंत्री बनवाने के लिए भेजा जो उनका कट्टर राजनीतिक दुश्मन था। अजीत जोगी हीरा खदानों के मामले में दिग्गी सरकार का जोरदार विरोध कर रहे थे। विवाद इस कदर था कि दोनों के बीच खुलकर शब्दबाण चल रहे थे। बावजूद इसके राजनीतिक मजबूरी का लबादा ओढ़े दिग्विजय सिंह ने विधायक दल की बैठक में अजीत जोगी का नाम रखा।

पार्टी हाईकमान के फरमान को बाकी विधायकों ने तो स्वीकार कर लिया लेकिन विद्याचरण शुक्ल के समर्थक नौ विधायकों ने मंजूर नहीं किया। उन्होंने बगावत कर दी और राज्यपाल को विधायकों के समर्थन की चिट्ठी भेजी गई तो उसमें नौ विधायकांे का समर्थन नहीं था।

वीवीआईपी गेस्ट हाउस पहुना में भीतर मुख्यमंत्री चयन के लिए बैठक चल रही थी और बाहर वीसी समर्थक कांग्रेस नेताओं का हुजूम विरोध प्रदर्शन कर रहा था। हालात संभालने में पुलिस को भी मुश्किल हो रही थी। इसी क्रम मे वह घटना भी हो गई जो शायद छत्तीसगढ़ के इतिहास के साथ हमेशा के लिए जुड़ गई है।

नाराज विद्याचरण शुक्ल को मनाने के लिए दिग्विजय सिंह फार्म हाउस पहुंचे तो उन्हें विद्याचरण शुक्ल के समर्थकों ने घेर लिया और उनकी पिटाई कर दी। धक्का मुक्की में श्री सिंह का कुर्ता फट गया ।

किसी राज्य के मुख्यमंत्री को इस तरह अपनी ही पार्टी के कार्यकर्ताओं का गुस्सा झेलने की संभवत: यह अपने आप में अनूठी घटना थी। वीसी समर्थकों का गुस्सा थमने का नाम नहीं ले रहा था। बाद में यही गुस्सा राज्य में एनसीपी का उदय कर गया।

इसके मूल को समझा जाए तो यह कहा जा सकता है कि छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण के शांत आंदोलन को राज्य निर्माण के अंतिम साल में विद्याचरण शुक्ल ने ही मुखर स्वर दिया।उनके समर्थकों को ऐसा महसूस हो रहा था कि मुख्यमंत्री पद की स्वाभाविक दावेदारी शुक्ल की ही है।

लिहाजा दो विधायकों का समर्थन रखने वाले अजीत जोगी छत्तीसगढ़ के पहले मुख्यमंत्री बन गए। उनका शपथ ग्रहण भी कम रोमांचकारी नहीं था। शपथग्रहण शुरू होने के थोड़ी देर पहले तक कांग्रेस के बागी शुक्ल समर्थक विधायक और भाजपा नेताओं के बीच अलग ही खिचड़ी पक रही थी।

राजनीति की हाईप्रोफाइल चालों ने ऐसा सीन क्रिएट कर दिया था कि जोगी मुख्यमंत्री बनने पर ही संदेह उत्पन्न हो गया था। 31 अक्टूबर की रात 12 बजे के एक घंटे पहले तक कश्मकश जारी रही। वीसी समर्थकों के साथ मिलकर भाजपा सरकार बनाने की कोशिशों मंे थी। लेकिन इस खेल में तत्कालीन केंद्रीय मंत्री और वीसी के घोर विरोधी रमेश बैस शामिल नहीं थे।

वे नहीं चाहते थे कि विद्याचरण शुक्ल सीएम बनें। उन्होंने जोगी के मुख्यमंत्री बनने और उनको शपथ दिलाने में अप्रत्यक्ष रूप से महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। खैर जोगी के मुख्यमंत्री बनने के बाद भी विरोध जारी रहा। उनके मंत्रिमंडल के सदस्य महेंद्र कर्मा से उनकी दूरी बनी रही। जोगी ने बाद में राज्य में अपनी जड़ें गहरी करनी शुरू कर दीं।

कांग्रेस विधायकों की बगावत को कुंद करने के लिए उन्होंने भाजपा के 12 विधायकों को दलबदल कराकर अपनी सरकार के पैर मजबूती से जमा लिए। वैसे इस सफर में भाजपा की अंदरुनी राजनीति का भी एक हिस्सा गौर करने लायक है। नेता प्रतिपक्ष नहीं बनाए जाने से बृजमोहन अग्रवाल के समर्थक नाराज हो गए थे और उन्होंने भाजपा कार्यालय में तोड़फोड़ कर तीन वाहनों को आग के हवाले कर दिया था।

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