Saturday, October 30, 2010

छत्तीसगढ़ का सफर :40 दिनों में जिला मुख्यालय राजधानी तब्दील

ध्यप्रदेश के रायपुर जिले के मुख्यालय को छत्तीसगढ़ की राजधानी में तब्दील करना एक बड़ी चुनौती थी और इसे मात्र 40 दिनों में पाने का असाध्य सा लक्ष्य। अस्पताल भवन को मंत्रालय और सर्किट हाउस को राजभवन में बदलने के लिए दिन और रात काम करना पड़ा।

राज्य निर्माण की तारीख बदली नहीं जा सकती थी और समय कम था। न प्रशासनिक मुख्यालय यहां था और न ही कोई ऐसा व्यक्ति था जो सारी जिम्मेदारियों को अपने हाथ में लेकर नई राजधानी को आकार दे सके।

पहले तो जिला मुख्यालय और केंद्र सरकार के ओएसडी के जरिए इस प्रक्रिया को अंजाम देने का प्रयास किया गया लेकिन इससे बात बनी नहीं। उसके बाद केंद्रीय गृह मंत्रालय के हस्तक्षेप के बाद रायपुर में कलेक्टर रह चुके आईएएस अफसर एमके राउत को राजधानी परियोजना प्रशासक बनाकर यहां पदस्थ किया गया। फिर शुरू हुई राजधानी को आकार देने की प्रक्रिया।

यह संयोग ही था कि रायपुर में उस समय कई भवन खाली पड़े थे या कई की उपयोगिता अपेक्षाकृत कम थी। डीके अस्पताल जेल रोड स्थित आंबेडकर भवन में शिफ्ट हो गया था, सो मध्यप्रदेश के वल्लभ भवन के छोटे रूप में डीके भवन को मंत्रालय का रूप दिया गया।

राजभवन के लिए बिल्डिंग तैयार करना बड़ा काम था। कोई भवन इसके लिए अफसरों को सूझ नहीं रहा था। केंद्र सरकार के ओएसडी ने मार्निग वाक के दौरान फैसला ले लिया कि सर्किट हाउस को राजभवन में तब्दील कर दिया जाए। इस तरह छत्तीसगढ़ का राजभवन तैयार हो गया। फिर समस्या आई विधानसभा का भवन कैसे तैयार करें।

बलौदाबाजार रोड पर राजीव गांधी जलग्रहण मिशन का भवन बनकर तैयार था। जलग्रहण मिशन का एशिया का सबसे बड़ा आफिस यहां से चले जाने का दुख छत्तीसगढ़ को झेलना पड़ा, लेकिन उसके स्थान पर राज्य की गौरवशाली विधानसभा खड़ी हो गई।

बीएड कॉलेज को बीटीआई बिल्डिंग में भेजकर पुलिस मुख्यालय बनाया गया। समस्या यहीं खत्म नहीं हो रही थी। विधायकों के लिए आवास और मंत्रियों के बंगले तैयार करना भी बड़ा काम था। मंत्रियों को बंगला देना था, साथ ही मुख्य सचिव से लेकर निचले स्तर के अफसरों को बंगले चाहिए थे। इसके लिए कई अफसरों को बंगलों से बेदखल कर छोटे मकानों में भेजा गया।

सिंचाई विभाग के गेस्ट हाउस को मुख्यमंत्री निवास बनाया गया लेकिन यह पहले मुख्यमंत्री अजीत जोगी को पसंद नहीं आया। 68 लाख रुपए खर्च कर बनाए गए भवन को रिजेक्ट कर दिया गया। बाद में सिविल लाइंस के कलेक्टर बंगले को मुख्यमंत्री निवास का रूप दिया गया।

रायपुर विकास प्राधिकरण ने आम लोगांे को बेचने के लिए पंकज विक्रम अपार्टमेंट तैयार किया था। खुशकिस्मती से यह कांप्लेक्स खाली था। इसे ही विधायक विश्राम गृह बनाया गया। भोपाल से रायपुर आने वाले 2500 कर्मचारियों को मकान देना भी चुनौतीपूर्ण काम था।

काशीराम नगर में कमजोर वर्ग के लोगों के लिए आरडीए द्वारा बनाए गए मकानों को कर्मचारियों को देने का निर्णय पहले तो किसी को रास नहीं आ रहा था लेकिन बाद में मजबूरी में इन्हीं वे एडजस्ट हुए। हालांकि इसमें कम तकलीफ नहीं थी।

लिहाजा 1 नवंबर को राज्य की स्थापना के बाद भी यह प्रक्रिया जारी रही। अफसरों के लिए मेडिकल कॉलेज कालोनी की खाली पड़ी जमीन में आईएएस कालोनी विकसित की गई और मंत्रालय अन्य बंगलों को अफसरों और मंत्रियों के लिए तैयार करने का काम लगातार जारी रहा लेकिन रायपुर शहर ने अपने आप में एक राजधानी को समाहित कर लिया।

धूल उड़ाती सड़कों के स्थान पर चिकनी सड़कें तैयार होने लगीं और धीरे-धीरे रायपुर के यातायात की तरह राजधानी आगे खिसकती रही।

No comments:

Post a Comment